‘आशीर्वाद’

माँ
आँचल तेरा है समुन्दर से गहरा
किनारे की अहमियत ही कहाँ थी
तू जो है साथ मेरे माँ
मुझे बेगानों की ज़रुरत ही कहाँ थी

पापा
सपनों कि कमी न होने दी आपने
ख्वाहिशें हमारी की पूरी
खुदके सपनों से पहले देखि हमारी ख़ुशी
पापा आपके बिना ये सपनों की दुनिया है अधूरी

गुरु
खुद पे यकीन करना सिखाया
उम्मीदों कि राह पे चलना सिखाया
सही और गलत में फर्क समझा के
गुरुजी अनजाने में आपने
हमें जीना सिखाया

माँ कि अहमियत जानी हर गुज़रते पल के साथ
पापा कि अहमियत जानी हर पुरे होते ख्वाब के साथ
गुरु कि अहमियत जानी जब हर नया मकाम हासिल हुआ
आप तीनों का आशीर्वाद सदा रहे हम पे
यही है हमारी दिल से दुआ …

(19.02.17, written for College day 2017)

आरक्षण … (Reservations Unlimited!!)

(My old post of 06.08.2011 (then published on nai-aash.in  ) being re-blogged today)

आरक्षण का ज़ोर है, आरक्षण का शोर है,
आरक्षण का देश हमारा, आरक्षण चहुँ ओर है,
‘आरक्षण’ चाहे तो करवा दे ‘चक्का जाम’,
आरक्षण के बिना नहीं चलती यहाँ ‘सरकार’ तमाम,
यह ‘दान’ है या ‘वरदान’, नहीं जानता मैं,
पर दे दो मुझे भी ‘आरक्षण’ लो आज मांगता हूँ मैं,
मेरी ‘सूची’ चाह कर भी ‘छोटी’ नहीं होती,
‘आरक्षण’ चीज़ ही ऐसी है कि ‘लालसा’ मेरी ‘कम’ नहीं होती,

क्या नहीं मिल सकता आरक्षण ‘अन्न’ का उनके लिए,
जिन्हें नहीं है नसीब दो वक्त की रोटी भी,
क्यों न कर दे रोज़गार आरक्षित बेरोजगारों के लिए,
और ‘सहारे’ कर दे आरक्षित ‘अनाथ’ बच्चों के लिए,
दे आरक्षण महिलाओं को शोषण और हिंसा से,
बचाएं बालिकाओं को छेडछाड और दहशत से,
‘कोमल’ सपनों को ‘बचालें’ ’रैगिंग’ के ‘दानव’ से,
हर जख्मी को मिले उपचार का आरक्षण,
‘न्याय’ रहे आरक्षित बेगुनाह और पीड़ित के लिए,

आओ कर दें हम आरक्षित इस देश के लिए,
सच्चे नागरिक,सत्यप्रिय और ईमानदार जन सेवकों को,
बहादुर-जांबाज़ सिपाहियो के लिए सम्मान को और
उनके परिवार जनोंके लिए समाज में गौरव को,
देश को रखे दूर ढोंगी-स्वार्थी -भ्रष्ट नेताओं से,
रहे सतर्क हमेशा लालची राजनीतिक पार्टियों से,
हम समाज को दें ‘हिंसा-मुक्ति’ का आरक्षण ,
रखे सुरक्षित इसे लूट-अपहरण-डकैती-बलात्कार से,
और जनता को बचाएं,आतंकवाद तथा दुर्घटनाओं से,

इस पूरी प्रणाली को बचाएं नपुंसक नाकारा लोगों से,
आओ इस धरा को रखे सुरक्षित प्रदुषण के खतरों से,
इंसानियत को दे आरक्षण सदभाव और प्रेम का,
‘सामान्य जन’ को दे आरक्षण ‘जीवन’ और ‘विश्वास’ का,
आशा को मिले विश्वास का, विश्वास को श्रद्धा का,
श्रद्धा को समर्पण और समर्पण को सम्मान का,
विकास को समृद्धि और समृद्धि को प्रगति का,गर मिले आरक्षण
– नहीं होगी इस पर कोई ‘राजनीती’ जब,
सही मायनों में सफल होगा ‘आरक्षण’.. तब !

‘किरमिच’ … ( ‘Canvas of Life’ )

समय कि कूंची चली है
यादों के दृश्य बिखरे है
जिंदगी के ‘किरमिच’ पर
आज कई रंग उभरे है

रंगीन कुछ
कुछ काले,
कुछ निखरे
कुछ धुन्धलाये
लेकिन सब ऐसे, जैसे
दिल खोल के जी आये

कई जज़्बात इनमे बोल रहे है
रिश्तों कि कहानियां कह रहे है
उम्र के पड़ाव इनमे झलक रहे है
हर दौर का हिसाब मांग रहे है

मेरे तब का मैं
और मेरे अब का मैं
दोनों आमने सामने है
सवाल भी मैं
और जवाब भी मैं
फिर भी उलझनें बाकी है

लगता है एक उम्र गुज़र गयी
कभी लगता है कि
अभी तो जिंदगी शुरू हुई,

या फिर कट चुकी है आधी
और बाकी है आधी,
‘चितकबरी’‘किरमिच’
टंगी हुई दीवार पर

हौसला

पेंच उलझते जा रहे थे
मुश्किलें बढती जा रही थी
बर्दाश्तगी छटपटाने लगी थी
सांस घुंटने लगी थी
लगता था जैसे हर मोड पर
साज़िश शतरंज बिछाये है,

मैं दांव चल नहीं रहा था
और वो जीत कि ग़लतफहमी में थे
मैं गिरती इंसानियत देख रहा था
वो गुलाम कि अकड पर हैरान थे,

हाँ, आखिर, थे तो हम गुलाम ही ,

मैं मुट्ठी भर भर हिम्मत जुटा रहा था
सपने तिनका तिनका फिसल रहे थे
मैं परबत परबत हौसला जुटाने लगा
सपनों के महल डगमगाने लगे
मायूसी रोज़मर्रा हो गयी
बार बार जो वो मेरे वजूद कों ठुकराने लगे

लेकिन, यही वक्त था कि,
मैंने सीने में हौसला भर लिया
और ‘बगावत’ कर ली
उनकी मालिकियत ठुकरा के
अपनी जिंदगी, अपने नाम कर ली

Jan Gan Mangal Daayak Yaan _ जन गण मंगल दायक यान

(Sharing herewith my thoughts on India’s successful Mars Orbit Mission (MOM) on 24.09.2014)

जन गण मंगल दायक यान
मंगल पर है अपना यान
मंगल
मंगल
मंगल यान
अमंगल हरता मंगल यान
जन गण मंगल दायक यान
मंगल पर है अपना यान

जग को दिया शून्य का ज्ञान
धन्य है भारत का विज्ञान
पूर्वजों का है वरदान
अंतरिक्ष कि दूरी आसान
मंगल कक्षा में मंगल यान
मंगल बेला में किया प्रयाण
जय जय जय हो मंगल यान
मंगल
मंगल
मंगल यान

जय जवान और जय किसान
जय जय जय जय जय विज्ञान
अंतरिक्ष में ली है उड़ान
लहराया है तिरंगा महान
लाल ग्रह पर अपने निशान
मंगल भुवन है मंगल यान

पुरुषार्थ का इनको है मान
अपने देश कि है ये शान
बढ़ाया भारत का सम्मान
कर्तव्य पूर्ति का है अभिमान
जन जन जिनका ऋणी हैं
ऐसे वैज्ञानिक महान
जन जन का ये स्वाभिमान

जन गण मंगल दायक यान
मंगल पर है अपना यान
मंगल
मंगल
मंगल यान

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Jan Gan Mangal Daayak Yaan
Mangal par hain apna Yaan
Mangal
Mangal
Mangal Yaan
‘Amangal’ hartaa mangal yaan
Jan Gan Mangal Daayak Yaan
Mangal par hain apna Yaan

Jag ko diya shoonya ka gyaan
Dhanya hai Bharat ka vigyaan
Purvajon ka hai vardaan
Antariksh ki doori aasaan
Mangal kaksha mein Mangal yaan
Mangal bela mein kiya prayaan
Jai jai jai ho Mangal yaan
Mangal
Mangal
Mangal Yaan

Jai jawaan aur jai kisaan
Jai jai jai jai jai vigyaan
Antariksh mein lee hai udaan
Lehraaya hai tirangaa mahaan
Laal grah par apne nishaan
Mangal bhuwan hai Mangal yaan

Purushaarth ka inko hai maan
Apne desh ki ye hai shaan
Badhaaya Bharat ka sammaan
Kartavya purti ka hai abhimaan
Jan jan jink wruni hain
Aise vaigyanik mahaan
Jan jan ka ye swaabhimaan

बाज़ार, व्यापार और गणतंत्र !

हम एक ‘गणतंत्र’ है
हमारा ‘अपना’ एक ‘मंत्र’ है,
हमारी अपनी ‘संस्थाओं’ के प्रति
हमारी ‘बेरूखी’ ‘अनोखी’ है,
इसीलिए देश में जो कुछ होता है
उसमे ‘अपने बाप का क्या जाता है’
‘होने दो जो होता है’
‘कौन किसके लिए रोता हैं’
‘यार सब चलता हैं’…

‘आबादी’ बढती है
‘नए शहर’ ‘पैदा’ होते हैं
‘ज़मीन’ के भाव कुलांचे मारते है
‘कंक्रीट-जंगल’ के दलाल खुश होते है,
‘रंग-बिरंगी’ सपने और
‘खोखली-जगमगाहट’ के ‘काम्प्लेक्स’ में
‘पर्यावरण’ और ‘प्रदुषण’ जैसे मुद्दे
‘फाइलों’ कि तरह गायब हो जाते है,
‘राजनीति’ इसीको ‘विकास’ कहती है

पर ‘कुदरत’ कहाँ
‘भेद’ करती है,
‘आपदा’ आती है
‘शहर’ डूब जाते हैं
‘इंसानियत’ ढूँढने से नहीं मिलती और
‘नीति-मूल्यों’ कि रूहें कांपती है,
‘लाचारी’ कों ‘बाज़ार’ निगलता है
रोते-बिलखते ‘मासूम’ ‘बिसात’ पर है
‘जिंदगी’ दम तोड़ रही है,
‘शेयर-बाजार’ में ‘सूचकांक’ बढ़ रहा है …

टक टकी …

क्यों हमसे इस कदर रूठा है तू भला,
और फेर ली है हमसे निगाहें अपनी,
क्या नहीं है परवाह तुझे उन मासूमों की भी,
जिन्होंने अभी अभी होश संभाला है,
और वे जिन्हें, तेरे होने पर –
तुझसे भी ज्यादा ‘यकीन’ है,

माना कि, की है बेवफाई हमने,
तेरे उसूलों से, और,
भटक गए हैं तेरी बताई हुई राह से हम,
फेर लिया है मुंह कुछ इस तरह से हमने ,
कि ‘जानकर’ बन गए है ’अनजान’
अपने ‘अंजाम’ से हम,

पर हम बेबसों कि तू सुनता रहा है सदा,
लगाये बैठे हैं टक टकी तेरी ओर,
हे परवर दिगार तुम दयालु ‘सरकार’
तेरा ही चलता रहा हुक्म हर बार,
तेरे बस में हैं सब भंडार
सूखी,बंजर,बिखरती ज़मीन को
तेरे ‘रहमो-करम’ का है इंतज़ार

जनसंख्या विस्फोट

आज विश्व पर्यावरण दिवस पर जन्मे समाजशिल्पी को ढेर सारी शुभकामनायें…
पर्यावरण प्रदुषण और उससे जुडी सारी समस्याओं का मुख्य कारण जनसँख्यामें हुई वृद्धि है. आज हमने अपने जीवन को सुखी बनाने के लिए भौतिक सुविधा के साधन जुटा रखे है. पर इसमें हमने प्रकृति के नैसर्गिक तंत्र को खतरा पहुँचाया है. मनुष्य की आबादी बढ़ने के साथ साथ प्राकृतिक संसाधनों की कमी बढती जा रही है. आज हम प्रकृति के कितने करीब है ये याद दिलाने के लिए कुछ प्रश्न लिखे है:

कब यह सब महसूस किया था साथी जीवन में तुमने?
प्यार प्रकृति का पाकर कब जीवन धन्य किया तुमने?

सुबह सवेरे मुर्गे की कब बांग सुनी थी? बचपन में?
चहकती चिड़िया को सुनकर कब महक उठे थे मधुबन में?
बना ही रहता बड़ी देर तक मुह में कड़वापन सारा,
ऐसे बता कब होंठ तले दातुन दबाया था तुमने?

तृप्त हुआ कब चक्की के आटे की वह रोटी खाकर?
या फिर घर के पिछवाड़े की ताज़ी सब्जियाँ बनवाकर?
आज जो कुछ खाया उसको बोते, उगते, बढते देखा?
या फसलों को काटके ले जाते कब देखा था तुमने?

कब देखा था आसमान उस रात निराला – तारों भरा?
या देखा ढलते सूरज को? लहलहाता घास हरा?
चाँद चौदवीं का वह देख के साथ लिए और पहला प्यार
पार चलें इस दुनिया के कब ऐसा सोचा था तुमने?

छैल छबीले यारों के संग उड़ता होली का वह रंग,
या हो दीवाली की खुशियों में जब पुरे परिवारका संग,
कभी अष्टमी, ईद कभी तो, सारे मनाये मिलजुल कर,
कौन सा धर्म है, क्या है जाति, कब ऐसा पूछा तुमने?

आज प्रदुषण फैलाता है, और शांति का भंग करे,
औद्योगिक कचरे फैलाकर, वनसंपति का नाश करे,
और अस्तित्व के संघर्ष में तु नैतिकता को भूल चूका,
जनसंख्या विस्फोट का क्या होगा अंजाम सोचा तुमने?

आज पर्यावरण दिन पर इस जनविस्फोट के प्रदुषण की भौतिक सुविधाओं को तुष्ट के बजाए आबादी को नियंत्रित करने का संकल्प करें और आने वाली पीढ़ी को पर्यावरण की छाया का सुख प्रदान करें.

भारत नमो नमः !

जब कहीं ‘नयी सड़क’ बनती है,
मुझे ‘गतिशील भारत’ नज़र आता है,
जब कही ‘नया पूल’ बनता हैं
मुझे ‘अवरोध मुक्त जीवन’ कि
आशा बंधने लगती है,
जल-भराव होने वाली जगहों पर
जब नए नए ‘काज-वे’ बनते है,
मुझे बाढ़ में फंसे हुए मुसाफिर को
राहत मिलती दिखती है,
इस देश का विकास मेरा ‘जीवन-यज्ञ’ बन गया है,

जब कहीं नया उद्द्योग आकार लेता हैं,
मुझे ‘बेकारी’ की समस्या कुछ कम होने कि खुशी होती ,
जब नयी कोई परियोजना ‘मंजूर’ होती हैं ,
तो मुझे विकास कि तरफ ‘दौडता हुआ ‘भारत’ नजर आता है,
लोगों की क्रय शक्ति बढ़ने से मुझे सुख की अनुभूति होती है,
मुझे नव निर्माण से नयी ‘प्रेरणा’ मिलती है,
मुझे उद्योग्शील समाज से नव ‘चेतना’ मिलती है,
इस देश के संसाधनों में मेरी श्रद्धा है,

अंतरिक्ष में जब भारत नयी नयी खोज करता है,
और नए नए मक़ाम हासिल करता है,
मुझे सारा आकाश तिरंगा नज़र आता है,
बादलों के पार लगता है तिरंगा लहरा रहा हो जैसे,
गूँज रहा है नाद ‘जय हिंद’ का चारों ओर ,
मिट्टी के कण कण से उठ रही हैं ‘सुनामी’ समृद्धि की,
देश की समर्थता में मुझे विश्वास हैं,
चहूँ-ओर मुझे भारत कि पताका लहराती नजर आती है

विकास मेरे दिल कि धडकन बन गया है,
प्रगति मेरी सांस में बस गयी है,
गुजरात मेरी शिराओं में दौडता है,
और शक्तिशाली भारत मुझे दौडाता हैं,
मैं हिंदुस्तान को जीता हूँ,
मैं उठता हूँ तो इस देश की मिटटी की ताकत के साथ,
और सोता हूँ तो लेकर सपने –
समृध्दशाली, सुखी और प्रगतिशील भारत के,
सद्भावना मेरी पहचान बन गयी है,
इस देश की आन मेरी ‘जान’ बन गयी हैं,

देश के पर्यावरण कि रक्षा,
कर्त्तव्य मेरा प्रथम है,
प्रकृति में मौजूद ईश्वरीय शक्ति को
मेरा बार बार नमन है,
मुझे उत्तुंग पर्वत शिखर और अथाह सागर में
कई जन्म जीने का अनुभव होता है,
और जब नर्मदा का जल कच्छ में आता हैं
मुझे ‘भागीरथ-प्रयास’ का अर्थ समझ में आने लगता हैं,
जहां भी कोई अच्छी बात होती है
या सकारात्मकता आकार लेती है
मुझे जीवन का मर्म समझ आता है
‘मेरा जीवन’ अब ‘भारत’ है,
‘भारत’ ही अब ‘मेरा जीवन’ है !!!

(यह कविता श्री.नरेन्द्र दामोदरदास मोदी जी से प्रेरित है, और उनके व्यक्तितत्व, उनके विचार और उनके कार्य को समर्पित है)

बादल

दूर आसमान में बादल
मुझको मतवाला बनाता बादल
कभी दिलवाला, कभी अलबेला बादल,
‘मन मोर’ को नचाता,
कभी मदहोश कर देता बादल,

कभी अटखेलियाँ करता बादल,
कभी अकेले ही घटाओंसे लड़ता बादल,
झरोखें से मुझको देखता बादल,
कभी मेरा पीछा करता बादल,
मेरे साथ दौड़ता – खेतों खेतों लहराता बादल,
कभी साथ मेरे चलता बादल,

कितने सारे सपनों का बादल,
किसी के सोलह सिंगार का बादल,
मेरे पहले प्यार का बादल,
यादों में ले जाता बादल,

बचपन सा नन्हासा बादल,
उमड़ घुमड़ करता बादल,
आशाएं जगाता
नित नया बादल,
जीवन का विश्वास बादल,
राह नयी दिखलाता बादल,
मोक्ष हमको दिलाता बादल,
नयी सृजन का कारण बादल