आज विश्व पर्यावरण दिवस पर जन्मे समाजशिल्पी को ढेर सारी शुभकामनायें…
पर्यावरण प्रदुषण और उससे जुडी सारी समस्याओं का मुख्य कारण जनसँख्यामें हुई वृद्धि है. आज हमने अपने जीवन को सुखी बनाने के लिए भौतिक सुविधा के साधन जुटा रखे है. पर इसमें हमने प्रकृति के नैसर्गिक तंत्र को खतरा पहुँचाया है. मनुष्य की आबादी बढ़ने के साथ साथ प्राकृतिक संसाधनों की कमी बढती जा रही है. आज हम प्रकृति के कितने करीब है ये याद दिलाने के लिए कुछ प्रश्न लिखे है:
कब यह सब महसूस किया था साथी जीवन में तुमने?
प्यार प्रकृति का पाकर कब जीवन धन्य किया तुमने?
सुबह सवेरे मुर्गे की कब बांग सुनी थी? बचपन में?
चहकती चिड़िया को सुनकर कब महक उठे थे मधुबन में?
बना ही रहता बड़ी देर तक मुह में कड़वापन सारा,
ऐसे बता कब होंठ तले दातुन दबाया था तुमने?
तृप्त हुआ कब चक्की के आटे की वह रोटी खाकर?
या फिर घर के पिछवाड़े की ताज़ी सब्जियाँ बनवाकर?
आज जो कुछ खाया उसको बोते, उगते, बढते देखा?
या फसलों को काटके ले जाते कब देखा था तुमने?
कब देखा था आसमान उस रात निराला – तारों भरा?
या देखा ढलते सूरज को? लहलहाता घास हरा?
चाँद चौदवीं का वह देख के साथ लिए और पहला प्यार
पार चलें इस दुनिया के कब ऐसा सोचा था तुमने?
छैल छबीले यारों के संग उड़ता होली का वह रंग,
या हो दीवाली की खुशियों में जब पुरे परिवारका संग,
कभी अष्टमी, ईद कभी तो, सारे मनाये मिलजुल कर,
कौन सा धर्म है, क्या है जाति, कब ऐसा पूछा तुमने?
आज प्रदुषण फैलाता है, और शांति का भंग करे,
औद्योगिक कचरे फैलाकर, वनसंपति का नाश करे,
और अस्तित्व के संघर्ष में तु नैतिकता को भूल चूका,
जनसंख्या विस्फोट का क्या होगा अंजाम सोचा तुमने?
आज पर्यावरण दिन पर इस जनविस्फोट के प्रदुषण की भौतिक सुविधाओं को तुष्ट के बजाए आबादी को नियंत्रित करने का संकल्प करें और आने वाली पीढ़ी को पर्यावरण की छाया का सुख प्रदान करें.