‘चिट्ठी’ का मोहताज ‘लोकतंत्र’

कल हुयी नक्सली हमले कि घटना के बाद, गृहमंत्रालय का एक वक्तव्य आया हैं कि ‘हमने सात राज्यों को ‘चिट्ठी’ भेज कर आगाह कर दिया था, कि , ऐसे हमले हो सकते हैं..!’

फिर उसी बात कों मैं दोहराना चाहूँगा, जो कि मैंने इससे पहले मेरे लेख ‘शिंदे साहब, शीला मैडम ! सोनिया जी कि चिट्ठी मिली क्या?’ में लिखी थी.
“… सबसे पहले तो ये विचार आया के आज के ‘समस’, ईमेल, मोबाइल या ‘ब्लैक-बेरी’ के ज़माने मे ‘गृह-मंत्रालय’ जैसा महत्वपूर्ण ‘मंत्रालय’ या उनका ‘महकमा’ चिट्ठी क्यों लिखता हैं? पिछले कई सालों से कई मामलों में विभिन्न ‘राज्यों’ कों गृहमंत्रालय ने चिट्ठियाँ भेजी होंगी, उनका क्या हुआ? सवाल ये भी उभरता हैं कि आजतक गृहमंत्रालय ने जो भी चिट्ठियाँ लिखी वो सामनेवाले को मिली? अगर मिली, तो उस पर क्या कार्रवाई हुई?, और नहीं हुयी तो ऐसे राज्यों के खिलाफ क्या कदम उठाये गए? क्या हमारी पुलिस फोर्स , हमारे जवान, हमारे अर्धसैनिक बल, इनके सुरक्षा के प्रति हमारा कोई कर्तव्य हैं या नहीं? और अगर हैं तो जब भी नक्सली हमला या किसी आतंकवादी वारदातों कि कोई पूर्व सूचना होती हैं तो ऐसे मामलों में महज चिट्ठी क्यों लिखी जाती हैं, आपातकालीन बैठक क्यों नहीं बुलायी जाती? और ऐसी समस्याओंसे निपटने कि रुपरेखा तयार क्यों नहीं कि जाती? ऐसे हमलों के प्रति हमारी तैय्यारियों का जायजा क्यों नहीं लिया जाता? क्यों नहीं ऐसे कदम उठाये जाते जिससे कि ये सन्देश जाएँ कि ऐसे मामलों के प्रति हमारा रवैया गंभीर हैं.

अभी तो जिस ढंग के बयान स्वयं गृहमंत्री करतें हैं उससे समस्या के प्रति उनकी लापरवाही, बेढंगापन, और घिसा-पीटा रवैया साफ़ नज़र आता हैं. ‘नयी सोच’ कि तो बात ही छोडिये, निर्दोष लोग मारे जाते हैं, सैनिक मारे जाते हैं और ऐसी घटनाएं निरंतर होती रहती हैं, तब भी इन्हें कोई फर्क पड़ता नज़र नहीं आता हैं.

ऐसा क्यों? क्या हमारे मुल्क में मानवीय जीवन का कोई मूल्य नहीं हैं? और तो और वे बयान देतें समय यह भी कहते हैं कि कुछ ही महीनों पहले भी ३० लोग मारे जा चुके हैं, जिनमे कुछ नेता भी मारे गए. फिर भी कोई कड़े कदम क्यों नहीं उठाए गए?

यहाँ मैं ये भी साफ़ कर देना चाहता हूँ कि जिस राज्य में ये घटना हुयी हैं और अगर वहाँ के मुख्यमंत्री कों गृहमंत्रालय से कोई पूर्व सूचना थी, तो उनकी भी जवाबदेही तय होनी चाहिए और, राज्य सरकार कि कोई खामी है तो राज्य सरकार कों तुरंत बर्खास्त कर देना चाहिए. और केंद्र सरकार कि कोई गलती हैं तो गृह मंत्री जी कों इस्तीफा तो तुरंत ही दे देना चाहिए था!

वे नेतागण जो ‘नयी सोच’ का समर्थन करतें हैं और ‘प्रो-एक्टिव’ गवेर्नेस कि दुहाई देतें हैं, वे भी अपनी ही पार्टी कि सरकार कों पूंछे कि बार बार होनेवाली ऐसी घटनाओं के लिए उनके पास क्या समाधान हैं?
केवल केंद्र सरकार कों कोसने का क्या मतलब हैं?

केंद्र में बैठी हुई सरकार कुछ नहीं करती तो आप तो कुछ ‘ठोस’ कीजिये जिससे कि लोगों कि और सुरक्षा बलों के सैनिकों कि जान बच सके.
और केंद्र सरकार कम से कम ऐसे गंभीर मामलों में ‘चिट्ठी’ कि दुहाई देना बंद कर दें! इतने बड़े लोकतंत्र के लिए, राष्ट्रीय सुरक्षा एवं आतंरिक सुरक्षा जैसे मामलों कि कार्यवाही और जवाबदेही क्या केवल ‘चिट्ठी’ ही तय करेगी. और कोई रास्ता नहीं हैं? और खास कर वर्तमान गृहमंत्री श्री.शिंदे तो हर बात में ‘चिट्ठी’ का जिक्र कर के समस्याओं कि गंभीरता का मजाक उड़ाते फिरते हैं.

एक तरफ हम ‘मंगल’ यात्रा कि तैयारी करते है और दूसरी तरफ देश कि सुरक्षा का समाधान ‘चिट्ठियों’ में ढूंढते हैं….. शायद इसी का नाम ‘भारतीय लोकतंत्र’ हैं !

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