कहते हैं कि ‘उम्मीद’ पर दुनिया कायम हैं, हर परिस्थिति में इंसान को ‘आशावादी’ होना चाहिए. ‘अच्छा’ होने कि उम्मीद करनी चाहिए. इसीलिए नव वर्ष का या पहला लेख इसी उम्मीद और आशा के साथ कि ‘देश’ बदलें और हमारी ‘सोच’ भी.
‘बुराई’ का नाश हो, ‘अच्छाई’ आगे बढे, ‘सत्य’ कि ‘विजय’ हो और ‘अत्याचारियों’ को सज़ा मिले.
वैसे खुशी कि बात ये है कि देश के नागरिकों में जागरूकता आयी है. पिछले दो साल से जिस तरह के ‘धरना’, प्रदर्शन’, ‘आंदोलन’ और ‘व्यवस्था (सिस्टम)’ के खिलाफ आवाजें उठी है वो एक अच्छा संकेत माना जा सकता है.
हमारे देश में घट रही घटनाओं से हम सभी आहत हैं, व्यथित हैं, और ये सब चीजें खास कर कलम के हर सिपाही को भी बहोत ज्यादा आहत करती हैं और मजबूर करती है कि हम अपनी संवेदनाएं कलम के माध्यम से व्यक्त करें.
इसी कड़ी में जब दिल्ली में पिछले दिनों हुयी बलात्कार कि घटना और देश में बे-लगाम ज़ारी इस तरह कि घटनाओं को पढकर, उन बिखरे हुए परिवार वालों के बारें में सोचकर और उनके ऊपर क्या बीत रही होगी यह सोचकर मन में यही ख्याल आता रहा कि आज़ादी के ६५ साल बाद भी आम आदमी न्याय से मेहरूम है.
कहीं तो यह ‘अत्याचार’ का ‘जुल्म’ का सिलसिला रुके, कुछ तो अच्छा हो, …
अनायास ही मुझे साहिर कि लिखी ये पंक्तियाँ याद आयी कि ‘अब कोई गुलशन ना उजड़े , अब वतन आज़ाद है’, एक बहुत ही सुन्दर गीत, जिसका संगीत जयदेव जी ने तैयार किया था और ये १९६३ बनी फिल्म ‘मुझे जीने दो’ का है, जिसमे मुख्य भूमिका में सुनील दत्त और वहीदा रहमान थे.
साहिर लुधियानवी जी सही मायनों में एक सच्चे ‘मानवतावादी’, सच्चे ‘धर्मनिरपेक्ष’ और एक ‘सच्चे इंसान’ थे. अपने गीतों में उन्होंने हमेशा इंसान को एक ‘प्यार मोहब्बत’ के अलावा सभी धर्मों का आदर एवं इंसानियत के प्रति सद्भाव रखने का सन्देश दिया. हर अन्याय, अत्याचार के खिलाफ साहिर ने आवाज़ उठाई. साहिर चूंकि अपनी माँ से बहोत प्यार करते थे और अपनी माँ कि तकलीफों को उन्होंने भली भांति देखा समझा था, उन्होंने नारी जीवन पर – उनके जीवन संघर्ष पर बहुत ही सटीक गीत भी लिखे हैं, जो हम सभी जानते हैं.
आज जिस गीत कि बात हो रही है, वो करीब ५० साल पहले लिखा गया था और जिन सपनों को पूरा करने कि इसमें बात कही गयी हैं, उसमे हम कितना सफल हुए हैं इस पर गौर कर, जो सपने अभी अधूरे हैं उन्हें पूरा करने कि जरुरत हैं, और उसके लिए सबको मिल कर प्रयास कर, संगठित होकर लड़ने कि भी जरुरत है,
मैं चाहूँगा कि पाठक इस गीत को बार बार सुने, उसमे लिखे गए शब्दों के जज्बातों को समझे और सब मिलकर इसका प्रयास करें कि देश में रचनात्मक बदलाव हो.
(इस गीत के लिए एक ‘कड़ी’ निचे दी गयी है, जहां पर पाठक इस गीत के बारें में हमारे मित्र श्री.राजा द्वारा लिखा गया लेख भी पढ़ सकते है )
http://atulsongaday.me/2010/08/15/ab-koi-gulshan-na-ujde-ab-watan-aazaad-hai/
आज पूज्य स्वामी विवेकानंद जी कि जयंती मनाई जा रही है. इसी सिलसिले में हमारे मित्र श्री.आशीष द्वारा भेजे गए ‘समस’ (SMS) को पेश कर, अगले लेख में मिलने कि तैयारी करतें हैं;
“We are what our thoughts have made us; so take care about what you think. Words are secondary. Thoughts live; they travel far “– Swami Vivekananda
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