दुश्मन से नफरत फ़र्ज़ हैं!

दिल्ली ‘गेंग रेप’ के आरोपियों के लिए कल दिल्ली हाईकोर्ट का जो फैसला आया, वो काफी सुकून पहुंचानेवाला हैं.
क्योंकि वक्त आ गया हैं कि हम समाज के दुश्मनों कि खिलाफ, अपराधियों के खिलाफ और शान्ति और अमन के दुश्मनों के खिलाफ कड़े से कड़े कदम उठायें और ज़रूरत पड़े तो इन्हें नेस्तनाबूद कर दें.

वैसे तो दुश्मन दोनों तरफ हैं, एक वो जो देश कि सरहद के उस पार हैं और दूसरा देश के भीतर.
हमें दोनों से लड़ना हैं, और पूरी ताकत के साथ लड़ना हैं, तभी हम देश में एक बदलाव ला पाएंगे.
अपना ‘ढुल-मूल’ रवैया छोड़कर सरकार को और समाज को भी सख्त कदम उठाने कि जरुरत हैं.

जो देश कि सीमाओं पर वार करता हैं उस दुश्मन से सरकार को कड़ाई से पेश आने कि जरुरत तो है ही. पिछले दिनों जब सरहद पर हमारे सैनिक शहीद हुए , यहाँ तक कि दुश्मन एक सैनिक का सर कलम कर ले गया लेकिन हम खामोश रहे , जाने क्यों हमें गुस्सा नहीं आता, हम गुस्से का इजहार तक नहीं कर पाते हैं. वक्त कि जरुरुत हैं कि हम दुश्मन को आगाह कर दें. उसे चेतावनी दें. ताकि वो जुर्रत ना कर सके कोई हिमाकत करने की.
पडोसी मुल्क गाहे-बगाहे हमारे संयम को चुनोती देते रहते हैं, और हम अपनी सहिष्णुता के झूठे अहंकार में सब कुछ बर्दाश्त कर लेते है.
इसमें कोई शक नहीं हैं कि वक्त आने पर अगर देश कि सेना कों छूट दे दी जाएँ तो वो दुश्मन कि हर ‘ईंट’ का जवाब ‘पत्थर’ से दे सकती हैं.

लेकिन देश के भीतर का दुश्मन ज्यादा खतरनाक हैं जो भितरघात कर देश को खोखला बना रहा हैं.
समाज के दुश्मन, देश के दुश्मन हैं, और साथ ही साथ ये इंसानियत के सबसे बड़े दुश्मन हैं.
इसलिए इनसे भी उतनी ही नफरत जरुरी हैं जितनी नफरत हम सीमा पार के दुश्मन से करते हैं.
सरकार के कुछ फैसलों यह प्रतीत हुआ था कि उन्होंने आतंकवाद जैसे अपराध के अपराधियों से निपटने कि ठान ली हैं. लेकिन उसके बाद बात आई गयी हो गयी और नक्सली हिंसा ने सर उठा लिया और सरकार फिर एक बार हतप्रभ नज़र आ रही हैं. उधर अभी भी बलात्कार कि घटनाएं जारी हैं, तेज़ाब के हमले हो ही रहे हैं, निर्दोष लोग अपनी जाने गंवा रहें हैं. बच्चों के शोषण और अपहरण के भी मामले हर दिन सामने आते रहते हैं.
‘भारत’ गुनाहगारों के लिए एक सबसे सुरक्षित जगह है या कहिये उनके लिए ‘जन्नत’ बन गया हैं. यहाँ पर आप कोई भी गुनाह कों अंजाम दे सकते हैं और फिर जाती, धर्म, राजनीती, सिफारिश, रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार जैसी चीज़ों का आसरा लेकर आराम से छूट सकते हैं. मुकदमों कों सालों साल तक खिंच सकते हैं, अपनी तबियत का हवाला देकर जेल जाने से बच सकते हैं.
आखिर ये सब कब तक?
‘गुनाह’ से नफरत करो ‘गुनाहगारों से नहीं’ वाली फिलोसोफी कब तक?

एक तरफ आम आदमी कों दो जून कि रोटी का जुगाड करना एक दिव्य के समान हैं. कई मुश्किलों का सामना कर, मेहनत और इमानदारी से जिंदगी गुज़ारने वालों के लिए आज का प्रतिस्पर्धा का वातावरण और भी तनाव बढ़ा रहा हैं/बढाता हैं. उसपर परिवार के सदस्यों कि सुरक्षा कि चिंता भी उसे सताती हैं.
समाज में एक दूसरे के प्रति अविश्वास बढ़ता जा रहा और उसका मुख्य कारण हैं अपराधियों के हौंसले बुलंद होना. उन्हें किसीका डर नहीं हैं.

सरकार और प्रशासन कों इनको काबू करने के साथ ही इनको सज़ा दिलवाकर, फिर से कोई गुनाह करने कि हिम्मत न करें ऐसा वातावरण बनाना आज कि सबसे बड़ी ज़रूरत है तभी लोकतंत्र बना रहेगा और मजबूत भी होगा.

समाज में अशांति फैलानेवालों के खिलाफ, गरीबों कों लूटनेवालों के खिलाफ, औरतों और बच्चों के शोषण करनेवालों के खिलाफ, भ्रष्टाचार करनेवाले, और कानून कों ठेंगा दिखानेवालों के खिलाफ सख्ती बहोत ज़रूरी हैं. इनसे कड़ाई से निपटना बहोत बहोत ज़रूरी हैं.

और इनको अपने अंजाम तक पहुंचाना हम सब का फ़र्ज़ हैं, हर अमन पसंद भारतीय का यह कर्तव्य हैं,
समय आ गया हैं कि हम सब एक साथ मिलकर इस समस्या का समाधान करें नहीं तो आनेवाला समय आम इंसान के लिए और भी बुरा हो सकता हैं.

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