This post is by Apeksha and is re-blogged from http://Nai-aash.in
जिस बेशर्मी से तुने सिगरेट उठाई,
ऐसा लगा जैसे खुद अपनी चिता जलाई।
तुझे क्या लगा? जो हवा में गया वो धुँआ है?
वो तो तेरी रूह ने टुकडो में ली तेरे जिस्म से बिदाई।
बड़ा सरल सा भविष्य है: फेफड़े का केन्सर!
पहले रोग को लगाने मे, फिर उसे मिटाने मे पूंजी उड़ाई।
ज़रा सोच के देख, अपनी पत्नी को बिधवा,
और बच्चे? उनकी खुशियों मे क्यों आग लगाई?
पर भूली मैं, तुझे खुद अपनी ही पड़ी नहीं है!
तूँ भला क्यों मिटाएगा बूढ़े माँ बाप की तन्हाई?
छोड़ दे सिगरेट और बचा ले अपनी बिखरती दुनिया,
बटोर ले वो जिंदगी जो तुने अब तक गँवाई।
(Link to the original post is http://nai-aash.in/2011/04/20/no-smoking-please/ )